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डेबिट कार्ड पर पिन कोड डालते हुए हाथ - भुगतान सुरक्षा
पिन कोड ने कैशलेस ट्रांजैक्शन को सुरक्षित बनाया - जानें इसके इतिहास के बारे में

भूमिका

आज के डिजिटल युग में पिन कोड (पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर) हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। चाहे एटीएम से पैसे निकालना हो, डेबिट कार्ड से भुगतान करना हो या मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करना हो—हर जगह पिन कोड की आवश्यकता होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महत्वपूर्ण सुरक्षा कोड का आविष्कार किसने किया? इस लेख में हम पिन कोड के इतिहास, इसके विकास और आधुनिक दुनिया में इसकी भूमिका के बारे में जानेंगे।

जॉन शेफर्ड बैरन - एटीएम और पिन कोड के आविष्कारक
जॉन शेफर्ड बैरन - वो व्यक्ति जिसने दुनिया को पिन कोड दिया

पिन कोड के जनक: जॉन शेफर्ड बैरन

जॉन शेफर्ड बैरन कौन थे?

पिन कोड का आविष्कार करने का श्रेय स्कॉटिश आविष्कारक और उद्यमी जॉन शेफर्ड बैरन को जाता है। उनका जन्म 23 जून 1925 को भारत के शिमला में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश सेना में अधिकारी थे। बाद में वह स्कॉटलैंड चले गए और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विज्ञान की डिग्री प्राप्त की।

एटीएम का आविष्कार और पिन कोड की आवश्यकता

1960 के दशक में बैरन ने स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम) का आविष्कार किया। उस समय बैंकों में कर्मचारियों की कमी थी और ग्राहकों को पैसे निकालने के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता था। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने एटीएम मशीन बनाई।

लेकिन एक बड़ी चुनौती थी—मशीन कैसे पहचानेगी कि पैसे निकालने वाला व्यक्ति वास्तव में खाताधारक ही है?
हस्ताक्षर का उपयोग करना संभव नहीं था क्योंकि मशीन हस्ताक्षर को नहीं पहचान सकती थी। इसलिए बैरन ने पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर (पिन) का विचार प्रस्तुत किया।

पिन कोड 6 अंकों के बजाय 4 अंकों का क्यों?

मूल रूप से बैरन ने 6-अंकीय पिन कोड का प्रस्ताव रखा था। लेकिन उनकी पत्नी कैरोलीन को यह याद रखने में मुश्किल होती थी। इसलिए उन्होंने इसे 4 अंकों तक सीमित कर दिया। आज भी दुनिया भर में 4-अंकीय पिन कोड का ही उपयोग किया जाता है।

एटीएम और पिन कोड का इतिहास

दुनिया का पहला एटीएम

जॉन शेफर्ड बैरन ने 1967 में बार्कलेज बैंक के लिए पहला एटीएम बनाया। 27 जून 1967 को लंदन में इस मशीन का उद्घाटन हुआ। पहले एटीएम से ब्रिटिश अभिनेता रेग वर्नी ने पैसे निकाले क्योंकि उनका नाम यादृच्छिक रूप से चुना गया था।

एटीएम का वैश्विक विस्तार

  • 1969: अमेरिका में पहला एटीएम स्थापित किया गया।

  • 1970: जापान में एटीएम की शुरुआत हुई।

  • 1980: भारत में एचएसबीसी बैंक ने मुंबई में पहला एटीएम लगाया।

आज पूरी दुनिया में 3.5 मिलियन से अधिक एटीएम काम कर रहे हैं, जिनमें पिन कोड मुख्य सुरक्षा प्रणाली है।

पिन कोड का विकास: एटीएम से डिजिटल भुगतान तक

पिन कोड का उपयोग अब सिर्फ एटीएम तक ही सीमित नहीं है। इसका विस्तार कई क्षेत्रों में हुआ है:

1. डेबिट और क्रेडिट कार्ड में पिन

  • शुरुआत में पिन कोड सिर्फ एटीएम के लिए उपयोग होता था।

  • बाद में पॉइंट ऑफ सेल (POS) मशीनों में भी डेबिट/क्रेडिट कार्ड के लिए पिन अनिवार्य कर दिया गया।

2. स्मार्टफोन और डिजिटल वॉलेट

  • Google Pay, PhonePe, Paytm जैसे डिजिटल भुगतान ऐप्स में MPIN का उपयोग होता है।

3. सरकारी पहचान प्रणाली

  • पैन कार्ड (स्थायी खाता संख्या) भी एक प्रकार का पिन कोड है।

  • आधार कार्ड में 12-अंकीय विशिष्ट आईडी होती है, जो पिन की तरह काम करती है।

बायोमेट्रिक एटीएम मशीन - फिंगरप्रिंट और पिन कोड का संयुक्त उपयोग
पिन कोड का भविष्य? बायोमेट्रिक तकनीक के साथ संयुक्त सुरक्षा प्रणाली

पिन कोड की सुरक्षा और भविष्य

पिन कोड के खतरे

  • पिन लीक होना: अगर कोई आपका पिन जान जाए, तो वह आपके खाते से पैसे निकाल सकता है।

  • फिशिंग: ऑनलाइन धोखाधड़ी के जरिए पिन चोरी होने का खतरा।

सुरक्षित पिन कैसे बनाएं?

  1. जन्मतिथि या सरल संख्याएं न रखें। (जैसे 1234, 0000)

  2. कम से कम 4 अंकों का पिन रखें। कुछ बैंक अब 6-अंकीय पिन भी देते हैं।

  3. नियमित रूप से पिन बदलें।

भविष्य की तकनीक: पिन का विकल्प

  • बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: फिंगरप्रिंट, फेस आईडी, आइरिस स्कैन।

  • वन-टाइम पासवर्ड (OTP): हर लेन-देन के लिए नया पासवर्ड।

  • टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन: पिन + एसएमएस कोड।

निष्कर्ष

जॉन शेफर्ड बैरन द्वारा आविष्कृत पिन कोड आज दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रणालियों में से एक बन चुका है। एटीएम से लेकर डिजिटल भुगतान तक, इसने वित्तीय लेन-देन को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया है। तकनीक के विकास के साथ पिन कोड का स्वरूप बदल सकता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य—सुरक्षा और पहचान—हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा।

अगली बार जब आप एटीएम से पैसे निकालें या डेबिट कार्ड से भुगतान करें, तो जॉन शेफर्ड बैरन के इस महान आविष्कार को याद जरूर करें!

पिन कोड से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

पिन कोड (पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर) 4 या 6 अंकों का एक गुप्त कोड होता है जिसका उपयोग एटीएम, डेबिट/क्रेडिट कार्ड और डिजिटल भुगतान के लिए सुरक्षा के रूप में किया जाता है।

पिन कोड का आविष्कार स्कॉटिश आविष्कारक जॉन शेफर्ड बैरन ने 1967 में किया था, जब उन्होंने पहला एटीएम मशीन बनाया था।

मूल रूप से 6 अंकों का पिन प्रस्तावित था, लेकिन बैरन की पत्नी को इसे याद रखने में कठिनाई हुई। इसलिए इसे 4 अंकों तक सीमित कर दिया गया।

हां, एटीएम पिन एक प्रकार का पिन कोड ही है। हालांकि, अब पिन कोड का उपयोग मोबाइल बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड और अन्य सुरक्षा प्रणालियों में भी होता है।

  • जन्मतिथि या “1234” जैसे सरल कोड से बचें

  • रैंडम नंबर्स का उपयोग करें

  • नियमित अंतराल पर पिन बदलते रहें

  • बैंक/कार्ड इश्यूअर को तुरंत सूचित करें

  • एटीएम पर “फॉरगॉट पिन” विकल्प का उपयोग करें

  • नए पिन के लिए ऑनलाइन रीसेट प्रक्रिया अपनाएं

नहीं, पिन कोड आमतौर पर संख्यात्मक (4-6 अंक) होता है जबकि पासवर्ड में अक्षर, संख्याएं और विशेष वर्ण शामिल हो सकते हैं।

भविष्य में बायोमेट्रिक (फिंगरप्रिंट, फेस आईडी) और OTP जैसी तकनीकें पिन कोड का स्थान ले सकती हैं, लेकिन अभी यह मुख्य सुरक्षा प्रणाली बना हुआ है।

तकनीकी रूप से हां, लेकिन सुरक्षा कारणों से अलग-अलग पिन रखने की सलाह दी जाती है।

  • तुरंत बैंक को सूचित करें

  • कार्ड ब्लॉक करवाएं

  • ट्रांजैक्शन हिस्ट्री चेक करें

  • पुलिस शिकायत दर्ज करें (बड़ी रकम के केस में)

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